RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 2 JUN ANSWER

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उत्तर1 सामाजिक स्तरीकरण समाज को उच्च व निम्न वर्गों में बांटने तथा स्तर निर्माण की एक व्यवस्था है जिस प्रकार भूगर्भ शास्त्र में मिट्टी व चट्टानों को विभिन्न स्तरों में बांटा जाता है उसी प्रकार समाजशास्त्र में समाज के अनेक लेयर होते हैं अतः सामाजिक स्तरीकरण समाज का व्यवसाय,शिक्षा,जाति एवं धर्म के आधार पर किया गया एक विभाजन है। पारसंस कहते हैं- ‘किसी सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों का ऊंचे व नीचे क्रम विन्यास में विभाजन ही स्तरीकरण कहलाता है


उत्तर2 कुले के शब्दों में – ‘जब एक वर्ग पूर्णतः अनुवांशिकता पर आधारित होता है तो उसे हम जाति करते हैं। उक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि जाति पूर्णतः जन्म पर आश्रित होता है जिसे कोई भी व्यक्ति व्यक्ति वैयक्तिक गुणों में वृद्धि करके अथवा व्यवसाय में परिवर्तित करके भी बदल नहीं सकता जो व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है वह जीवन भर उसी का सदस्य रहता है।
डॉ घुरिये ने अपनी सुप्रसिद्ध कृति जाति,वर्ग और व्यवसाय में जाति की निम्न विशेषताओं पर प्रकाश डाला है-
1) जाति समाज को विभिन्न भागों या खंडों में विभक्त कर देता है और प्रत्येक उपखंड के सदस्यों की स्थिति पद व कार्य आदि निश्चित रहते हैं।
2) जाति के अंतर्गत समाज के सभी जातियों में एक संस्करण जो कि ऊंच-नीच या उतार-चढ़ाव के क्रम में देखने को मिलता है।
3)प्रत्येक जाति के खानपान संबंधी नियम होते हैं।
4) प्रत्येक जाति में नागरिक व धार्मिक निर्योग्यताएं तथा प्रतिबंध होते हैं।
5)जाति के अंतर्गत व्यक्ति के व्यवसाय पूर्व निर्धारित या परंपरागत होता है अथवा व्यवसाय के चुनाव का अभाव होता है।
6)प्रत्येक जाति में विवाह संबंधी नियम होते हैं।
स्पष्ट है जाति समाज व्यवस्था द्वारा स्वीकृत नियमों की वह महत्वपूर्ण संस्था है जिसमें सदस्यों के भोजन व सहवास, व्यवसाय व विवाह आदि के संदर्भ में प्रतिबंध लगाए जाते हैं तथा इसमें अनिवार्य रूप से संस्तरण पाया जाता है।


उत्तर3 जाति जन्म पर आधारित वह महत्वपूर्ण समूह है जिसमें सदस्यों के खानपान विवाह व्यवसाय आदि पक्षों पर निश्चित प्रतिबंध लगे होते हैं, अर्थात परंपरागत व्यवसाय अपने ही जाति में विवाह तथा अपनी या अपनों से ऊंची जाति के साथ खान-पान के संबंध रखने को सामाजिक दृष्टिकोण से उचित माना जाता है।
जाति के कार्यों एवं महत्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1)व्यक्तिगत जीवन में जाति के कार्य एवं महत्व
2)सामाजिक जीवन में जाति के कार्य एवं महत्व ।
1)व्यक्तिगत जीवन में जाति के कार्य एवं महत्व-
*जाति व्यवस्था व्यक्ति को उनके जन्म से ही एक निश्चित सामाजिक स्थिति प्रदान करती है जिसमें निर्धनता, संपत्ति तथा सामाजिक क्षेत्र में सफलता-असफलता कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकती।
* व्यक्ति के जन्म से ही व्यवसाय का निर्धारण जाति व्यवस्था के कारण हो जाता है जिससे वह व्यर्थ की प्रतियोगिता से सिर्फ बची नहीं जाता बल्कि चिंता मुक्त भी रहता है
*जाति व्यवस्था के कारण ही व्यक्ति अपने आप को मानसिक रूप से सुरक्षित समझता है।
*जाति व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक जाति के अपने नियम हैं जिनका पालन करना प्रत्येक सदस्य का परम कर्तव्य है।
*जाति प्रत्येक व्यक्ति को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराती है।
*जाति व्यवस्था पर व्यवहारों पर नियंत्रण रखती है।
2)सामाजिक जीवन में जाति के कार्य एवं महत्व-
* सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करती है,
*धार्मिक भावना की सुरक्षा होती है,
*सामाजिक स्थिति को बनाए रखने में सहायता होती है,
*रक्त की शुद्धता बनाये रखने में सहायक होती है,
*सामाजिक एकता बनाए रखने में सहायक होती है,
*श्रम विभाजन में सहायक होती है *राजनीतिक स्थिरता बनाये रखने में सहायक होती है।
उपर्युक्त सामाजिक कार्यों के अतिरिक्त भी जाति व्यवस्था में समाज के हित में कई महत्वपूर्ण कार्य किये जैसे आवश्यक प्रशिक्षण व कार्य कुशलता बनाए रखी है, जाति व्यवस्था ने समाजवादी व्यवस्था को की कल्पना को साकार रूप प्रदान किया।


उत्तर4 जाति व्यवस्था ने न केवल व्यक्तित्व को स्थिरता प्रदान की है तथा जाति समुदाय को सुरक्षित किया बल्कि संपूर्ण समाज को संगठित रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जाति के सामाजिक व्यवस्था संबंधी कार्य एवं महत्व इस प्रकार हैं-
1)प्रत्येक जाति की अपनी स्वयं की शिक्षा,पद्धति, व्यवहार करने की विधियां, आचार संहिता होती है जिसे संस्कृति कहते हैं यह संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरण होता रहता है जिसके कारण उस जाति के सांस्कृतिक मूल्यों की सुरक्षा हो जाती है।
2) जाति व्यवस्था ने व्यक्ति की धार्मिक भावना को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
3)जाति व्यवस्था ने समाज को स्थिर बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
4) जाति व्यवस्था ने रक्त की शुद्धता बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया जाति के प्रत्येक सदस्य का विवाह अपने ही जाति में संभव है जिससे रक्त की शुद्धता बनी रहती है।
5) जाति समाजिक संरचना को न केवल स्थिरता प्रदान करती है बल्कि उसके स्वरूप को बनाए रखने में भूमिका प्रदान करती है।
6) जाति व्यवस्था ने समाज में श्रम विभाजन जैसे महत्वपूर्ण कार्य को पूरा करने में सहायता की।
7) जाति व्यवस्था ने समाज की राजनीतिक चेतना को बरकरार बनाए रखा।


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