RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 3 JUN ANSWER

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उत्तर1 सामान्य रूप से में वर्ग किसी भी वस्तु के विभिन्न स्तर या खंड को कहा जाता है किंतु समाजशास्त्र में वर्ग को स्तरीकरण की एक महत्वपूर्ण आधार के रूप में देखा जाता है। समाजशास्त्री मैकाइवर और पेज के अनुसार एक सामाजिक वर्ग समुदाय का वह हिस्सा है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर दूसरे भागों से पृथक किया जा सके। गुल्डनर के अनुसार ‘एक सामाजिक वर्ग उन व्यक्तियों या परिवारों का योग है जिनकी आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी होती है।


उत्तर 2 वर्ग की विशेषताएं
1) वर्ग की सर्वश्रेष्ठ विशेषता यह है कि यह संस्तररणात्मक व्यवस्था के रूप में रहते हैं अर्थात उतार-चढ़ाव का एक निश्चित क्रम होता है ।
2)वर्ग व्यक्ति में ऊंच-नीच श्रेष्ठ-हीन तथा उच्च- निम्न की भावना को उत्पन्न करता है ।
3)वर्ग चेतना वर्ग की एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
4)वर्ग भेद होने के पश्चात भी सामान्यतः समाज के सभी वर्गों में पारस्परिक निर्भरता बनी रहती है।
5) जाति व्यवस्था के समान कठोर व अपरिवर्तनशीलता का गुण वर्ग व्यवस्था में नहीं पाया जाता। वरन यह तो खुली व्यवस्था का प्रतीक है।
6) वर्ग व्यवस्था में सीमितसंबंध होते हैं।
7) प्रत्येक वर्ग में अनेक उपवर्ग होते हैं ।
8) वर्ग का निर्माण या वर्ग की सदस्यता में जन्म का महत्व नहीं होता।


उत्तर3 वर्ग और जाति में अंतर
वर्ग तथा जाति दोनों ही सामाजिक स्तरीकरण के आधार है किंतु जाति व वर्ग में अनेक विभिन्नताएं हैं जिन्हें की विभिन्न आधारों द्वारा समझा जा सकता है –
1)जाति में व्यक्तियों की स्थिति का आकलन जन्म के आधार पर किया जाता है जबकि वर्ग में व्यक्ति की स्थिति का आकलन उसके वैयक्तिक गुणों के आधार पर होता है।
2) जाति के अंतर्गत प्रत्येक जाति का व्यवसाय पूर्व निर्धारित होता है तथा जातीय व्यवसाय करने को महत्व दिया जाता है किन्तु वर्ग में ऐसा कोई नियम नहीं है
3)जाति अपने सदस्यों पर जाति से बाहर विवाह पर कठोर दण्ड देने का प्रावधान करता है किंतु वर्ग में ऐसा कोई नियम नहीं होता ।
4) जाति अपने सदस्यों के व्यवहार, आचरण व कार्यों पर विभिन्न माध्यम से प्रतिबंध लगाती है किन्तु वर्ग में इस संबंध में किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं रखता ।
5) जाति के सदस्यों के मध्य पारस्परिक प्रेम आत्मीयता सहानुभूति तथा सहयोग के संबंधों का विस्तार रहता है। किन्तु वर्ग में औपचारिक दिखावटी तथा स्वार्थ पर आधारित संबंध होते हैं।
6)जाति की सदस्यता प्रदत्त होती है अतः व्यक्ति अपनी जाति नहीं बदल सकते जबकि किन्तु व्यक्ति अपने वैयक्तिक गुणों के आधार पर कोई भी वर्ग की सदस्यता अर्जित कर सकता है।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि जाति तथा वर्ग पृथक- पृथक अवधारणाएं हैं जहां जाति परंपरागत स्थिति को प्रदर्शित करती है वही वर्ग आधुनिक युग की देन कहे जाते हैं। दोनों ही अवधारणाओं में अंतर होने के बाद भी दोनों ही स्तरीकरण के आधार पर स्वीकार किए जाते हैं।


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