RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 31 MAY ANSWER
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उत्तर1गांधीजी सच्चे मानवतावादी थे तथा उनकी यह व्रत उनके जीवन अनुभवों का निचोड़ है ।गांधीजी के 11 व्रत निम्न है –
1)सत्य ही परमेश्वर है , 2)अहिंसा के बिना सत्य की खोज संभव नहीं, 3)ब्रह्मचर्य– सभी इंद्रियों पर संयम है, 4)अस्वाद-जीभ पर पर नियंत्रण से ही ब्रह्मचर्य का पालन होगा ,5)अस्तेय– चोरी नहीं करना चाहिए 6) अपरिग्रह– संतोष से ज्यादा संग्रह नहीं करना चाहिए, 7)सर्वत्र भय वर्जन होना चाहिए, 8) अस्पृश्यता निवारण -हिंदू धर्म का कर्तव्य है, 9)शरीर श्रम– अपना काम खुद ही कर लेना चाहिए, 10) सर्वधर्म- समभाव- सभी धर्म की इज्जत करना चाहिए, 11)स्वदेशी– अपने आसपास रहने वालों की सेवा में स्त्रोत ही स्वदेशी धर्म है।
उत्तर2 श्री अरविंद ने योग दर्शन के महत्व को रेखांकित करते हुए वर्तमान परिवेश के अनुरूप उनकी पुनर्व्याख्या की । उनके दर्शन को अनुभव अतीत सर्वांग योग दर्शन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अपने विचारों को योग के संकुचित व्याख्या तक सीमित रखने की जगह सत्य तक पहुंचने के लिए विभिन्न मार्गों को समन्वित रूप में बांधने का प्रयास किया।
समग्र योग वह साधन प्रणाली है जिससे सांसारिक जीवन और अध्यात्म जीवन के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके अर्थात लौकिक जीवन को खोये बिना भगवान को प्राप्त करना तथा मानव जीवन के भीतर भगवान और प्रकृति का पुनर्मिलन स्थापित करना।समग्र योग आत्मा परमात्मा में भेद को हटाना चाहता है ।
इसका उद्देश्य व्यक्तिगत मुक्ति नहीं है वरन इसका उद्देश्य के व्यक्ति मात्र के अंदर भगवान को अविव्यक्त करना है और इसके लिए मानव माध्यम मात्र है।
उत्तर3 वेदांत दर्शन आत्मा को ब्रह्म का अंश एवं पूजनीय मानता है अतः जीवित ईश्वर की निष्काम भाव से सेवा ही स्वामी विवेकानंद के व्यावहारिक वेदांत दर्शन है। हमारे दर्शन की परंपरा सर्वे भवंतू सुखिनः की है अर्थात विश्व का प्रत्येक व्यक्ति ही नहीं प्रत्येक जीव को सुख की अनुभूति होनी चाहिए। दुनिया तभी पवित्र और अच्छी हो सकती है जब हम स्वयं पवित्र और अच्छे हो। विवेकानंद ने विघटन, अश्रद्धा, अतृप्ति जैसी समस्याओं का उल्लेख किया और उन समस्याओं का निराकरण के लिए व्यवहारिक वेदांत की अवधारणा प्रस्तुत की। इस सिद्धांत की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है –
1) वेदांत दर्शन व्यवहारिक होने के कारण दैनिक जीवन में आचरण योग्य है ।
2) वेदांत व्यवहारिक ज्ञान है जिसे कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध क्षेत्र में दिया था महाराणा प्रताप ने श्वेतकेतु को दिया तथा विवेकानंद ने आधुनिक युग के युवाओं को दिया ।
3)भेदभाव का खंडन- वेदांत दर्शन ब्रह्म को सर्वव्यापी मानता है। आत्मा उसका ही अंश है अतः जो जातिवाद में विश्वास करता है वह आस्तिक नहीं नास्तिक है क्योंकि जब हर शरीर में ईश्वर है तो कोई शरीर उच्च और कोई निम्न नहीं हो सकता है।
4) सेवा की भावना – वेदांती को अपने सुख-सुविधाओं के ध्यान के साथ दूसरों के सुख दुख का ध्यान रखना चाहिए अपना पराया भूल कर प्राणी मात्र की मंगल कामना और हित साधना चाहिए ।
5)शाश्वत सुख का आधार- वेदांत दर्शन मानता है कि शरीर नाश्वर है एवं आत्मा सत्य है अतः मनुष्य को शरीर से मोह नहीं करनी चाहिए।