RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 5 JUN ANSWER
by Angeshwar · 06/06/2020
RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 5 JUN ANSWER
उत्तर1 प्रतिस्पर्धा दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समान उद्देश्य जो इतना सीमित है कि सब इसके भागीदार नहीं बन सकते को पाने के प्रयत्न को कहते हैं।
इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं–
इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हैं–
1)प्रतियोगिता में दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह होना चाहिए।
2) प्रतिस्पर्धा में तीसरा पक्ष भी होता है जिससे समर्थन प्राप्त करने का प्रयास दोनों पक्ष करता है।
3) प्रतिस्पर्धा एक अवैयक्तिक प्रक्रिया है।
4)प्रतिस्पर्धा अहिंसात्मक साधनों से लक्ष्य प्राप्ति का प्रयत्न है।
5)यह निरंतर प्रक्रिया है अर्थात जीवन के हर क्षेत्र में हर समय पायी जाती है।
6)यह सार्वभौमिक प्रक्रिया है अर्थात यह प्रत्येक समाज काल स्थान में मौजूद रहती है।
7) यह अचेतन प्रक्रिया है अर्थात प्रतिस्पर्धी एक दूसरे के प्रयत्नों से अजागरूक होते हैं।
2) प्रतिस्पर्धा में तीसरा पक्ष भी होता है जिससे समर्थन प्राप्त करने का प्रयास दोनों पक्ष करता है।
3) प्रतिस्पर्धा एक अवैयक्तिक प्रक्रिया है।
4)प्रतिस्पर्धा अहिंसात्मक साधनों से लक्ष्य प्राप्ति का प्रयत्न है।
5)यह निरंतर प्रक्रिया है अर्थात जीवन के हर क्षेत्र में हर समय पायी जाती है।
6)यह सार्वभौमिक प्रक्रिया है अर्थात यह प्रत्येक समाज काल स्थान में मौजूद रहती है।
7) यह अचेतन प्रक्रिया है अर्थात प्रतिस्पर्धी एक दूसरे के प्रयत्नों से अजागरूक होते हैं।
उत्तर2 प्रतिस्पर्धा दो प्रकार के होते हैं-
1) वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा- यह चेतन प्रतिस्पर्धा है। इसमे प्रतियोगी एक दूसरे के प्रयत्नों से भलीभांति जागरूक होते हैं। जैसे कक्षा में प्रथम स्थान या चुनाव में जीतने की होड़ वैयक्तिक स्पर्धा है।
2)अवैयक्तिक प्रतिस्पर्धा- यह अचेतन प्रतिस्पर्धा है इसमें प्रतिस्पर्धी एक दूसरे के प्रयत्नों से अनजान होते हैं जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी करते अभ्यर्थी।
गिलीन एवं गिलीन ने प्रतिस्पर्धा के चार स्वरूप का उल्लेख किया है-
1)आर्थिक प्रतिस्पर्धा– यह उद्योगपतियों व व्यापारियों के बीच प्रतिस्पर्धा है। इसमें लाभ कमाने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं।
2)सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा– यह दो संस्कृति के लोगों के बीच होने वाला प्रतिस्पर्धा है। इसमें एक अपने संस्कृति को श्रेष्ठ थोपने का प्रयास करता है।
3) प्रजाति प्रतिस्पर्धा -जातियों में शरीक विशेषताएं जैसे चमड़ी का रंग, कद, मुह की आकृति, बाल आदि में अंतर पाया जाता है और इनमें से एक अपने को श्रेष्ठ बताने का प्रयत्न करता है तब प्रजाति प्रतिस्पर्धा जन्म लेती है ।
4)भूमिका या प्रस्थिति के लिए प्रतिस्पर्धा।
1) वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा- यह चेतन प्रतिस्पर्धा है। इसमे प्रतियोगी एक दूसरे के प्रयत्नों से भलीभांति जागरूक होते हैं। जैसे कक्षा में प्रथम स्थान या चुनाव में जीतने की होड़ वैयक्तिक स्पर्धा है।
2)अवैयक्तिक प्रतिस्पर्धा- यह अचेतन प्रतिस्पर्धा है इसमें प्रतिस्पर्धी एक दूसरे के प्रयत्नों से अनजान होते हैं जैसे भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी करते अभ्यर्थी।
गिलीन एवं गिलीन ने प्रतिस्पर्धा के चार स्वरूप का उल्लेख किया है-
1)आर्थिक प्रतिस्पर्धा– यह उद्योगपतियों व व्यापारियों के बीच प्रतिस्पर्धा है। इसमें लाभ कमाने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं।
2)सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा– यह दो संस्कृति के लोगों के बीच होने वाला प्रतिस्पर्धा है। इसमें एक अपने संस्कृति को श्रेष्ठ थोपने का प्रयास करता है।
3) प्रजाति प्रतिस्पर्धा -जातियों में शरीक विशेषताएं जैसे चमड़ी का रंग, कद, मुह की आकृति, बाल आदि में अंतर पाया जाता है और इनमें से एक अपने को श्रेष्ठ बताने का प्रयत्न करता है तब प्रजाति प्रतिस्पर्धा जन्म लेती है ।
4)भूमिका या प्रस्थिति के लिए प्रतिस्पर्धा।
उत्तर3 प्रतिस्पर्धा के महत्व-
1) उद्देश्य की पूर्ति- प्रतिस्पर्धा से लोगों की इच्छाओं,आकांक्षाओं तथा लक्ष्य की पूर्ति अधिक उत्तमता के साथ हो जाती है।
2)प्रतिस्पर्धा से विभिन्न क्षेत्र-धर्म, राजनीति,शिक्षा आदि से श्रेष्ठ व्यक्ति का चुनाव होता है।
3)प्रतिस्पर्धा से नवीन आविष्कारों का जन्म होता है जैसे व्यक्ति उस वस्तु विशेष पर ध्यान देता है जो अन्य से बेहतर हो ।
4)प्रतिस्पर्धा से कम लागत पर उच्चतम सेवाएं उपलब्ध हो जाती है।
5) प्रतिस्पर्धा से योग्यता एवं कुशलता में वृद्धि होता है क्योंकि सफल होने के लिए व्यक्ति को योग्य एवं कुशल होना पड़ता है।
प्रतिस्पर्धा की सीमाएं-
प्रतिस्पर्धा सदैव सकारात्मक हो यह जरूरी नहीं इसके दुष्परिणाम भी हैं गिलीन एवं गिलिन ने इसे सामाजिक विघटन के रूप में देखा है जैसे नवीन अविष्कार होने से प्रत्येक व्यक्ति नवीन परिस्थितियों से अनुकूलन नहीं कर पाते जो पारिवारिक विघटन या सामाजिक विघटन का का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त इसमें सभी व्यक्तियों का महत्व नहीं है। यह गरीबी,बेरोजगारी का भी कारण बनता है।
1) उद्देश्य की पूर्ति- प्रतिस्पर्धा से लोगों की इच्छाओं,आकांक्षाओं तथा लक्ष्य की पूर्ति अधिक उत्तमता के साथ हो जाती है।
2)प्रतिस्पर्धा से विभिन्न क्षेत्र-धर्म, राजनीति,शिक्षा आदि से श्रेष्ठ व्यक्ति का चुनाव होता है।
3)प्रतिस्पर्धा से नवीन आविष्कारों का जन्म होता है जैसे व्यक्ति उस वस्तु विशेष पर ध्यान देता है जो अन्य से बेहतर हो ।
4)प्रतिस्पर्धा से कम लागत पर उच्चतम सेवाएं उपलब्ध हो जाती है।
5) प्रतिस्पर्धा से योग्यता एवं कुशलता में वृद्धि होता है क्योंकि सफल होने के लिए व्यक्ति को योग्य एवं कुशल होना पड़ता है।
प्रतिस्पर्धा की सीमाएं-
प्रतिस्पर्धा सदैव सकारात्मक हो यह जरूरी नहीं इसके दुष्परिणाम भी हैं गिलीन एवं गिलिन ने इसे सामाजिक विघटन के रूप में देखा है जैसे नवीन अविष्कार होने से प्रत्येक व्यक्ति नवीन परिस्थितियों से अनुकूलन नहीं कर पाते जो पारिवारिक विघटन या सामाजिक विघटन का का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त इसमें सभी व्यक्तियों का महत्व नहीं है। यह गरीबी,बेरोजगारी का भी कारण बनता है।