RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 1 JUN ANSWER
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उत्तर-1 अतिमानस हमारे मन या चेतना की उच्चतम व्यवस्था है जहां अखंड एवं शाश्वत दृष्टि तथा तीनों कॉल को अनुभव करने योग्य त्रिकालदर्शी दृष्टि प्राप्त हो जाती है। वर्तमान समय में बुद्धि में मनुष्य का और विकास करने की क्षमता नहीं रही तथा बुद्धि मानव को पतन और पराभव की ओर ढकेल रही है इसलिए मानव को यदि अपना अस्तित्व बचाना है और विकास करना है तो उसे अति मानस को अपने अंतःकरण में उतारना पड़ेगा। बुद्धि का आश्रय छोड़कर प्रज्ञा में प्रवेश करना होगा।
अति मानस की विशेषताएं- *आध्यात्मिक जीवन- समग्र योग के जरिए सांसारिक जीवन बनाते हुए भी संपूर्ण मानव जाति के लिए आध्यात्मिक जीवन संभव है।
* क्रमिक रूपांतरण- हमारी चेतना के सामान्य मानस की अवस्था से अतिमानस स्तर तक का रूपांतरण धीरे-धीरे क्रमबद्ध रूप से होगा आरंभ यहां कुछ लोगों में होगा जो आगे चल कर समाज और विश्व का रूपांतरण होंगे ।
*भगवत चेतना – अतिमानस वस्तुतः भगवत चेतना का ही पर्याय है जो मानव चेतना के विकास का अंतिम चरण होगा ।
*सौर्वभौमिकता का अंतःकरण- सौर्वभौम आत्मा का अनुभव आध्यात्मिक प्रगति का महत्वपूर्ण चरम है किंतु अतिमानस की अवधारणा इससे भी अधिक ऊंचा है
*प्रकृति से सहयोग- चेतना के रूपांतरण के इस चरण में मनुष्य को प्रकृति के साथ मिलकर चलना होगा।
उत्तर-2श्री गुरु नानक देव जी ने दुनिया को सर्व ईश्वरवाद का संदेश दिया। जिसमें वह सभी भाव और सत्य फलित होते हैं जिनके साथ मानव की प्रगति और कल्याण अनिवार्यता जुड़ा है। श्री गुरु नानक देव जी एक युगांतकारी, युग दृष्टा महान दार्शनिक चिंतक, क्रांतिकारी, समाज सुधारक थे। उनका दर्शन मानवतावादी दर्शन था। उनका चिंतन धर्म एवं नैतिकता के सत्य शाश्वत मूल्यों का मूल था। इसलिए उन्होंने संपूर्ण संसार के प्राणियों में मजहबों, वर्णो, जातियों से ऊपर उठकर एकात्मकता का दिव्य संदेश देते हुए अमृतमयी ईश्वरीय उपदेशों से विभिन्न आध्यात्मिक दृष्टिकोण के बीच सर्जनात्मक समन्वय प्रस्तुत किया, साथ ही विभिन्न संकुचित धार्मिक दायरों से लोगों को मुक्त कर उनमें अध्यात्मिक मानवतावाद और विश्व बंधुत्व के बीच अनिवार्य संबंध की आवश्यकता का सरल सहज मार्ग प्रशस्त किया।
गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे ।गुरु नानक जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनंत, सत्य, सर्वशक्तिमान,सर्वव्यापी है। मूर्ति पूजा निरर्थक है,नाम स्मरण सर्वोपरि है।गुरु नानक की वाणी भक्ति ज्ञान और वैराग्य से ओतप्रोत है।
या
उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की 10 शिक्षाएं दी जो इस प्रकार है-
1)ईश्वर एक है
2)सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो
3)ईश्वर सब जगह है और प्राणी मात्र में मौजूद है
4)ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता
5) ईमानदारी से और मेहनत करके उदर पूर्ति करनी चाहिए
6) बुरा कार्य करने के बारे में न सोचे ना किसी को सताएं
7)सदैव प्रसन्न रहना चाहिए
8) मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए
9) सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं
10) भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ लालच और संग्रहवृति बुरी है।
उत्तर-3वल्लभाचार्य के अनुसार वर्तमान घोर कलयुग में ज्ञान,कर्म, भक्ति आदि साधनों में क्षमता नही रही ना ही पात्रता रही कि मोक्ष प्राप्त करा दे। ऐसी स्थिति में भगवान कृष्ण हीं अवतरित होकर सबका उद्धार कर सकते हैं।
वल्लभाचार्य के पुष्टिमार्ग शास्त्रों में वर्णित विधि-विधान पूर्ण भक्ति मार्ग से भिन्न विशुद्ध प्रेम प्रधान स्वतंत्र भक्ति मार्ग है। पुष्टिमार्ग निःसाधनों का राजमार्ग है जिनके पास मोक्ष हेतु कर्म ज्ञान भक्ति आदि कोई साधन नहीं है इसलिए ऐसे निसाधनो के लिए भगवत कृपा ही एकमात्र साधन है। पुष्टी मार्ग प्रेम प्रधान मार्ग है इसमें ईश्वर जिससे मिलना चाहता है उसे ही मिलता है जीव प्रयत्न का कोई महत्व नहीं होता।
यह मार्ग सेवा मार्ग भी है भक्ति मार्ग में श्री कृष्ण की गृह सेवा होती है सर्वजनिक मंदिर नहीं होता है
उत्तर-4भारतीय धर्मो में सतनाम धर्म का पवित्र और अनुपम स्थान है। इसकी खोज गुरु घासीदास बाबा ने किया। उन्होंने अपने समय में समाज में व्याप्त प्रथाओं, अंधविश्वासों, छुआछूत, उच्च नीच भेदभाव, जर्जर रूढ़ियों व पाखंडों को दूर करते हुए जनसाधारण को धर्म के ठेकेदारों, जमीदारों,पंडों, पीरों, फकीरों के चंगुल से मुक्त कराते हुए सत्य, अहिंसा,दया, प्रेम, करुणा,परिश्रम, परोपकार, भाईचारा की मजबूत नीव के साथ सतनाम धर्म की स्थापना की।
गुरु घासीदास के अनुसार सतनाम के आचरण व सार
सात आचरण-
1)सत्य-अहिंसा को धारण करें
2) आडंबरों-अंधविश्वासों से बचें
3) समस्त मानव जाति के साथ समान व्यवहार करें
4)नारी की रक्षा व सम्मान करें
5)पशु हत्या न करें मांस का सेवन ना करें
6)पशुओं को हल में ना जाते
7)नशा का सेवन ना करें ।
सतनाम के सार-
सत्य- सत्य प्रकृति के पांच तत्व जल थल अग्नि हवा अकाश में समाया है। सत्य ही धर्म,व्रत, जीवन है ।सत्य ही सार है।
गुरु – सतनाम धर्म गुरु प्रधान हैं गुरु मार्गदर्शक हैं।
सतनाम धर्म का पालन जीवन में अत्यधिक महत्व है अपने अधिकारों कर्तव्यों को समझना उनका पालन व उपयोग करना सतनाम धर्म है।