RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 30 MAY ANSWER

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उत्तर1 समाज व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए वर्ण का निर्माण किया गया था। इसके महत्व को निम्न बिंदुओं पर समझ सकते हैं- 1) संघर्षों से छुटकारा- व्यक्तियों की इच्छाओं को नियंत्रित करके समाज को संघर्षों से दूर रखना।
2) श्रम विभाजन – वर्ण व्यवस्था का श्रम विभाजन व विशेषीकरण के लिए महत्वपूर्ण रहा। इससे समाज व व्यक्ति को किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा।
3)वर्ण व्यवस्था से रक्त की पवित्रता बनी रही तथा भारतीय संस्कृति को नष्ट होने से भी बचाया।
4) वर्ण व्यवस्था में सभी वर्णों का महत्व था।
लेकिन समाजशास्त्री महत्त्व होने के बाद भी वास्तविक धरातल पर इसके कुछ दोष भी हैं-
1) वर्ण व्यवस्था में उच्च वर्ण ₹ ब्राह्मण क्षत्रियों ) ने निम्न वर्ण शूद्रों का हमेशा शोषण किया जिसका कई उदाहरण शास्त्रों में मिले हैं।
2)यह अंधविश्वासों को बढ़ाया। निम्न वर्ण इसे ईश्वरी निर्मित मान कर हमेशा शोषित हुआ ।
3) वर्ण व्यवस्था एक तरफ कर्म व गुण को महत्व देती थी तो वहीं दूसरी तरफ व्यक्ति के स्वभाव संबंधी गुणों को जन्मजात शिकार करती थी।
यह आलोचनीय है।
4) वर्ण व्यवस्था में ज्यादातर उच्च वर्ण का एकाधिकार रहा।
किंतु आज वर्ण व्यवस्था का कितनी भी आलोचना हो भारतीय संस्कृति की रक्षा करके उसमें निरंतरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।


उत्तर2 पुरुषार्थ उस सार्थक जीवन शक्ति का घोतक है मनुष्य को सांसारिक सुखभोग के बीच अपने धर्म पालन के माध्यम से ईश्वर या मोक्ष की राह दिखलाता है। यह चार है- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष।
डॉ कपाड़िया के अनुसार ‘धर्म’ मानव का पाशविक व दैवीय प्रकृति के बीच का श्रृंखला है। ‘अर्थ’ मनुष्य में वस्तुओं को प्राप्त करने व संग्रह करने की जो प्रवृत्ति है , की ओर संकेत करता है। काम’ मानव के सहज स्वभाव व भावी जीवन को व्यक्त करता है तथा उसकी काम भावना व सौंदर्यता की प्रवृत्ति की पुष्टि की ओर संकेत करता है। ‘मोक्ष’ मानव जीवन के चरम उद्देश्य व आंतरिक आध्यात्मिक अनुभूति का प्रतीक है।


उत्तर3 मोक्ष जीवन का अंतिम लक्ष्य है।यह मानव जीवन का परम उद्देश्य है तथा आंतरिक आध्यात्मिक अनुभूति का प्रतीक है । डॉक्टर गोपाल के शब्दों में ‘ मोक्ष का संबंध आत्मा से है। आत्मा की सर्वोच्च विकास, अपने सच्चे स्वरूप की प्राप्ति को मोक्ष कहा है।
मोक्ष का जीवन में अत्यधिक महत्व है। मोक्ष प्राप्ति का अर्थ है आनंद की प्राप्ति और संसार के समस्त झंझटों से छुटकारा। दूसरे अर्थ में निष्कामता ही वास्तव में मोक्ष है और यदि ऐसा होता है तो प्रयत्नशील व्यक्ति के व्यक्तित्व में ‘मैं’और ‘मेरा’ का पूर्णतया नष्ट हो जाता है। इन दोनों संकुचित दीवारों के टूटने का अर्थ है महान व्यक्तित्व का विकास और तद द्वारा जन कल्याण व समाज की प्रगति।


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