RPS-2020 CGPSC MAINS WRITING PRACTICE 28 MAY ANSWER

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उत्तर1 आश्रम व्यवस्था व्यक्ति के सुनियोजित जीवन का प्रतिनिधित्व करता है। इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं
1)आश्रम व्यवस्था पर क्रमशः चलकर मोक्ष प्राप्त करना ।
2)आश्रम व्यवस्था के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था के निरंतरता को बनाए रखना।
3) आश्रम व्यवस्था द्वारा इहलोक तथा परलोक सुधारना।


उत्तर2

आश्रम का समाजशास्त्री महत्व निम्नलिखित है-
1)जीवन की विभिन्न अवस्थाओं का विकास -आश्रम के माध्यम से व्यक्ति के संपूर्ण जीवन को आयु के आधार पर बाल्यावस्था, युवावस्था प्रौढ़ावस्था व वृद्धावस्था में विभक्त कर चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा सन्यास को जन्म दिया गया तथा प्रत्येक के साथ ऐसे कर्तव्य भी दिया गया जिसे कर सकने में सक्षम हो तथा सामाजिक व्यवस्था की निरंतरता भी बनी रह सके। 2) बौद्धिक व मानसिक विकास-आश्रम के माध्यम से व्यक्ति के बौद्धिक व मानसिक विकास को महत्व दिया गया है बौद्धिक विकास ही सामाजिक विकास है और मानसिक विकास से व्यक्तित्व का विकास होता है।
3) कर्म प्रधान जीवन- प्रत्येक आश्रम के साथ महत्वपूर्ण कर्तव्य जोड़कर व्यक्ति को कर्म प्रधान बना दिया जाता था ।
4) व्यक्ति व समूह में पारस्परिक निर्भरता – आश्रम व्यवस्था के माध्यम से व्यक्ति व समूह के पारस्परिक संबंध व निर्भरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान मिला है।आश्रम व्यवस्था पर की गई विवेचना विभिन्न विचार तथा विभिन्न ग्रंथों के विवेचन से यह स्पष्ट हुआ है कि आश्रम व्यवस्था निश्चित रूप से समाज उपयोगी है किंतु इसे मात्र सैद्धान्तिकक व्यवस्था माना जा सकता है वास्तविक व व्यवहारिक धरातल पर यह सफल नहीं है।

उत्तर3

वर्ण शब्द संस्कृत भाषा की वृ धातु से बना है इसका आशय है वरण या चयन करना है अर्थात व्यवसाय का चयन करना ।

कुछ विद्वान वर्ण को वृत्ति कहते हैं इस रूप में जिन व्यक्तियों का स्वभाव व मानसिक विशेषताएं समान हो उन्हीं से वर्ण का निर्माण होता है।


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